भारत के किस जंगल में आज भी आदिवासी रहते हैं?|आदिवासीयों की जनसंख्या कितनी है?

क्या आपको पता है आज के इस आधुनिक जमाने में भी भारत के कुछ इलाकों में आदिवासी रहते हैं। जहां पर आम नागरिकों को जाना बिल्कुल मना किया गया है।

क्योंकि ये आदिवासी लोग अनजान व्यक्ति को देखकर उसे अपने लिए खतरा महसूस करते हैं। इसलिए उन्हें मार देते हैं।

फल स्वरूप भारतीय सरकार द्वारा वहां पर जाना गैर कानूनी करार कर दिया गया है।

हेलो दोस्तों, आज हम आदिवासी के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। भारत के किस इलाके में आज भी आदिवासी लोग रहते हैं।

आदिवासी किसे कहते हैं?

अगर कोई भी समुदाय अपना इतिहास, संस्कृति या भाषा की उत्पत्ति नहीं जानता है। उन्हें “आदिवासी” कहते हैं।

भारत में बहुत ही आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। लेकिन वे लोग अब धीरे-धीरे आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं।

जबकि भारत के अंडमान निकोबार द्वीप के क्षेत्र में एक सेंटिनल आईलैंड है। वहां पर ऐसे आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं जो अभी तक आधुनिक मनुष्य के संपर्क में नहीं आए हैं।

आज हम इनके बारे में विस्तार से जानने का प्रयास करेंगे।

भारत में आदिवासी कहां रहते हैं?

North Sentinel island

भारत का एक ऐसा आदिवासी समुदाय जो अभी तक आधुनिक दुनिया से बिल्कुल अलग है। यह भारत के अंडमान द्वीप के नार्थ सेंटिनल आइलैंड पर रहते हैं।

मुख्य भारत से बिल्कुल पूरब दिशा में समुद्रों के बीचो बीच अंडमान निकोबार का सेंटिनल आईलैंड है। जहां पर आज भी आदिवासी रहते हैं।

यह लोग बिलकुल पहले की आदिवासियों की तरह रहते हैं। यह जानवरों का शिकार करके अपना जीवन यापन करते हैं।

जब कोई इस टापू पर जाता है यह लोग उसे अपना दुश्मन समझ कर मार देते हैं। इसलिए भारत सरकार ने वहां पर लोगों को जाने से प्रतिबंध लगा दिया।

क्या सेंटिनल आईलैंड पर कोई जाने का प्रयास किया?

जी हां, सेंटिनल आईलैंड जहां पर आज भी आदिवासी रहते हैं। वहां पर कई बार जाने का प्रयास किया गया। हर बार किसी ना किसी वजह से वहां जाना नाकामी साबित हुआ।

एक बहुत ही प्रसिद्ध लेखक मार्कोपोलो अंडमानी लोगों के बारे में कहते हैं कि वह बहुत ही खतरनाक होते हैं। उनकी बातें बहुत ही पिछड़ होती है। उनकी आंखें लाल होती है। और यह जब भी अनजान आदमी को देखते हैं तो उन्हें मारने की कोशिश करते हैं। या तो पता नहीं चला कि वह किस आधार पर यह सब बातें लिख रहे हैं।

अंडमान निकोबार सेंटिनल आईलैंड पर जाने का पहला प्रयास

1980 में ब्रिटिश नेवी ऑफिसर मॉरिस पोर्टमैन कुछ सैन्य टुकड़ियों के साथ सेंटिनल आईलैंड पर पहुंचे। वहां से जबरजस्ती एक आदमी एक औरत और चार बच्चों को जबरदस्ती पकड़ कर लेकर आए।

लेकिन यह लोग बहुत डरे हुए थे। यह अच्छे से खाना नहीं खा पाते थे। इनकी तबीयत खराब होने लगी तब इन्हें कुछ समय बाद उसी सेंटिनल आईलैंड पर छोड़ दिया गया। जिसके कारण अब वे लोग बहुत ही चौकाने हो गए थे।

अंडमान निकोबार सेंटिनल आईलैंड पर जाने का दुसरा प्रयास

1896 में एक कैदी काला पानी जेल से भाग कर अनजाने में सेंटिनल आईलैंड पर पहुंच गया। छानबीन करने के बाद पता चला कि उसे आदिवासियों द्वारा मार दिया गया है।

उसे मारकर किनारे पर बांधकर टांग दिया गया था। जैसे की एक चेतावनी हो।

अंडमान निकोबार सेंटिनल आईलैंड पर जाने का तीसरा प्रयास

फिर लगभग 70 साल बाद 1967 में सरकारी खोजकर्ता आलोक नाथ पंडित उस द्वीप पर गए। इनकी मुलाकात आदिवासियों से हुई। वे लोग शायद बाढ़ से बचने के लिए कहीं ऊंची जगहों पर चले गए थे।

लेकिन वहां पर खरपतवार से बनी झोपड़ियां दिखाई दीं। कुछ तीर कमान भी दिखाई दिए। तीज के नुकीली सिरे पर धातु लगा हुआ था। इसके साथ साथ कुछ धातु के बर्तन भी दिखाई दिए। इससे पता चलता है कि वे लोग कुछ धातुओं की खोज कर चुके थे।

अंडमान निकोबार सेंटिनल आईलैंड पर जाने का चौथा प्रयास

1970 में एक बड़े से पत्थर पर यह लिख दिया गया कि यह टापू सिर्फ भारत से संबंधित है। जिससे कोई अन्य देश इसपर कब्जा ना करें।

कुछ दिनों बाद वहां पर खाना, सूअर, बर्तन, नारियल कुछ खिलौने इत्यादि ले जाया गया।

शुरुआती समय में आदिवासी डर गए थे। लेकिन धीरे-धीरे साहस जुटाकर वे इन सामानों की तरफ गए। यह लोग सूअर तथा पुतले को जमीन में गाड़ दिए।

बाकी के उपयोगी चीजों को अपने साथ ले गए। जिससे पता चलता है कि वे बासी मांस खाने के इच्छुक नहीं थे। और आदमियों को भी नहीं खाते थे।

अंडमान निकोबार सेंटिनल आईलैंड पर जाने का पांचवां प्रयास

मधुमला चट्टोपाध्याय और इनके कुछ सहयोगियों ने 1991 में आदिवासियों से मिली। उन्हें खाने के लिए कुछ केले ले गई। जिससे वे बहुत खुश हुए।

मधुमला चट्टोपाध्याय

लेकिन उसी दौरान अमेरिकी ईसाई धर्म के प्रचारक जॉन चाऊ वहां पर गए। यह लोग बिना भारत सरकार से बताएं, गैर कानूनी ढंग से सेंटिनल आईलैंड पर गए।

यह लोग आदिवासियों को कुछ गिफ्ट दिए। और गाना गाकर सुनाने लगे। इसे देखकर आदिवासी इंक्वारी जोर-जोर से हंसते थे। और इन का मजाक उड़ाते थे।

फिर जब भारत सरकार को उनके जाने की खबर मिली तब पता लगाने के लिए सेना का हेलीकॉप्टर भेजा।

इससे यह पता चला कि आदिवासी उन्हें भी मार कर समुद्र के किनारे लटका दिए थे।

उनके बॉडी को लेने का प्रयास किया गया। फिर कुछ लोगों ने सोचा कि इन्हें क्यों परेशान किया जाए। ऐसे ही छोड़ देते हैं।

उसके बाद से भारत सरकार उस टापू पर जाने से प्रतिबंध लगा दिया है। क्योंकि अगर वे लोग आम नागरिकों के संपर्क में आएंगे उन्हें अलग-अलग बीमारियां होंगी।इन बीमारियों के लिए उनके पास दवा नहीं होगा।

जिससे उनकी जनजातियां खतरे में पड़ सकती है। इसलिए अब सेंटिनल आईलैंड पर कोई भी व्यक्ति बिना भारत सरकार के अनुमति से नहीं जाता है।

नार्थ सेंटिनल आईलैंड पर जाने से हमें क्या जानकारी प्राप्त हुई?

काफी प्रयासों के बाद नार्थ सेंटिनल आइलैंड के बारे में बहुत सी अज्ञान जानकारियों के बारे में पता चला है जैसे कि

  1. सेंटिनल आइलैंड के आदिवासी मनुष्य को मारकर नहीं खाते हैं। सिर्फ खतरा महसूस होने पर ही उन्हें मारते हैं।
  2. सेंटिनल आइलैंड के आदिवासी गुफाओं में नहीं रहते हैं। वे लोग खरपतवार से झोपड़िया बनाना सीख चुके हैं।
  3. उनकी औसत ऊंचाई 5.6 फूट हो सकता है।
  4. वे लोग अभी तक खेती करना नहीं सीखे हैं। खाने के लिए शिकार करते हैं।
  5. उनकी भाषाएं भारत के सभी भाषाओं से भिन्न है।
  6. वे लोग नाव चलाना भी जानते हैं। लेकिन नाव चला कर टापू से ज्यादा दूरी तक नहीं जाते है।

भारत के आदिवासी लोगों के बारे में विस्तृत जानकारी क्या है?

हम दुनिया के सातवें सबसे बड़े देश हैं। वैश्विक मानचित्र पर हमारी मजबूत उपस्थिति है। यह हमेशा हमारे इतिहास का हिस्सा रहा है और यही हमें विविधता से भरा देश बनाता है।

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हमारे पास भारत के हर कोने में और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार भी आदिवासी लोग रहते हैं।

उनमें से कोई भी अपना इतिहास, संस्कृति या भाषा नहीं जानता है। इसलिए उन्हें कुछ पुरातत्वविदों द्वारा स्वदेशी जनजातियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जबकि अन्य उन्हें “आदिवासी” कहते हैं।

अधिकांश आनुवंशिकीविद् सभी बसे हुए मानव आबादी को एक ऐसे व्यक्ति के वंशज मानते हैं जो 50,000 से अधिक वर्ष पहले अफ्रीका से बाहर चले गए थे।

जो बताता है कि हम दुनिया भर के समुदायों या क्षेत्रों के बीच कुछ आनुवंशिक अंतर क्यों देखते हैं; अंतर जो अफ्रीका से एशिया, यूरोप और अमेरिका के उन प्राचीन प्रवासों से जुड़े हैं।

यह विशेष रूप से यह समझाने पर केंद्रित है कि जनजातियां अन्य भारतीय समुदायों से कैसे भिन्न हैं और इसलिए व्यक्तियों के रूप में उनके लिए क्या चुनौती है। यह शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के मामले में आदिवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों को सूचीबद्ध करता है।

कुछ विशिष्ट भातीय आदिवादी जनजातियां कैसी हैं ?

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आदिवासी महाद्वीप में एक बड़ी और विशिष्ट आबादी है, जिनकी अपनी संस्कृति और भाषा है, हालांकि वे एक आम भाषा (मुख्य रूप से हिंदी) बोलते हैं। वे अधिकांश लोगों के साथ इतनी समानताएं साझा करते हैं कि उन्हें पूरी तरह से अलग करना असंभव है।

भारतीय अक्सर उन्हें उनके मूल के आधार पर “भारतमाता” या “द्रविड़” कहते हैं। जबकि उन्हें भारत जैसे कुछ देशों में आदिवासी के रूप में लेबल किया जाता है।

वे वास्तव में महा भारत नामक एक अन्य जनजाति से संबंधित हैं। ये जनजातियाँ भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग सभी हिस्सों को कवर करती हैं – पश्चिम से पूर्व तक और उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक।

1947 में विभाजन के बाद उत्तर भारत से सबसे बड़ा प्रवासन हुआ है, जब उन जनजातियों में से अधिकांश पश्चिम पाकिस्तान और बांग्लादेश में चले गए, जिससे अराकनी लोग बने।

भारत में अनेक प्रकार की जनजातियाँ पाई जाती हैं। हालांकि, उनमें से अधिकांश अभी भी प्रमुख शहरी केंद्रों से दूर दूरदराज के इलाकों में रहते हैं। वे पूरे देश में बिखरे हुए हैं और उनकी कोई उपस्थिति नहीं है।

इन भारतीयों को आदिवासी कहा जाता है क्योंकि वे मूल रूप से भारत नहीं आए थे।

लेकिन अंग्रेजों द्वारा ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था, जो उन्हें अनुबंधित दासता प्रणाली के तहत मजदूरों और कॉफी बागान श्रमिकों के रूप में इस्तेमाल करते थे। अंग्रेजों ने इन भारतीयों को श्रम के सस्ते स्रोत के रूप में तब तक इस्तेमाल किया जब तक कि उन्हें अंततः दुनिया के अन्य हिस्सों में “विस्थापित” नहीं किया गया।

इस विस्थापन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप देश भर में दूरदराज के इलाकों (जैसे मराठियों) में रहने वाली इन जनजातियों के बीच भाषा या संस्कृति में और बदलाव हुए हैं।

आधुनिक आदिवासी जनजाति के लोग किस क्षेत्र में पाए जाते हैं।

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आदिवासी जैसे कई भारतीय आदिवासी समूह किसी विशेष जातीय समूह या भाषा के साथ अपनी पहचान नहीं रखते हैं, लेकिन बोलते और करते हैं।

हाल के वर्षों में, भारत में आदिवासी लोगों और समुदायों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। वे मुख्य रूप से भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में पाए जाते हैं और उन्हें अक्सर उपेक्षित किया जाता है क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखा जाता है।

भारतीय आदिवासियों को लंबे समय से एक ही समुदाय के अंतर्गत रखा गया है, जिसे ‘ब्राह्मण’ के नाम से जाना जाता है।

हालांकि, मणिपाल विश्वविद्यालय, ऑरोविले में स्थित एक गैर सरकारी संगठन, नेशनल ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनटीआरआई) द्वारा जारी एक वैज्ञानिक अध्ययन के बाद से, शोधकर्ताओं ने नोट किया है कि भारत के आदिवासी सभी ब्राह्मण नहीं हैं।

उनमें से कुछ किसी भी समुदाय से संबंधित नहीं हैं। वास्तव में, यह अनुमान लगाया गया है कि जापान या चीन की आबादी की तरह पूरे भारत में लगभग 10 करोड़ आदिवासी रह सकते हैं।

निष्कर्ष ( Conclusion )

ऐसे देखा जाए तो दुनिया काफी आगे निकल चुकी है। आज के समय लोग किसी एक स्थान पर रह कर दूर किसी दूसरे स्थान से बातचीत कर सकते हैं।

लेकिन आज भी आदिवासी लोग रहते हैं। जो पहले की जैसा है। जानवरों का शिकार करके अपना जीवन यापन करते थे। घास फूस से बने कपड़े पहनते हैं। और तीर धनुष से अपना शिकार करते हैं।

इससे पता चलता है कि दुनिया में आज भी कितने विषमताएं हैं।

अगर आपको इस पोस्ट से संबंधित किसी भी प्रकार का सवाल है तो आप कमेंट में अवश्य पूछें। आपको जरूर उत्तर दिया जाएगा।